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“मम्मी vs पापा” आपका फेवरेट कौन? परिणाम घोषित

होली के रंगों में घुल गया है ‘मम्मी vs पापा’ का संग्राम!

होली आई, रंग लाई! उत्साह की लहर के साथ ही घर-घर में एक चिर-परिचित, हल्की-फुलकी जंग भी छिड़ जाती है – मम्मी बनाम पापा की जंग!

मम्मी का तर्क:

  • “रंगों का त्यौहार तो है, पर घर को युद्ध के मैदान में बदलने की क्या ज़रूरत है?”
  • “गुलाबी पिचकारियों के वो निशाने कहाँ लगेंगे, बच्चों पर या दीवारों पर?”
  • “नए कपड़े भी रंगों में भीगकर पहचान छुपा लेंगे!”
  • “इतना पानी बहाया जाएगा कि गर्मियों में प्यास ही बुझाने को नहीं मिलेगा!”

पापा का पलटवार:

  • “अरे यार, होली साल में एक बार आती है, बच्चों को भी खेलने दो!”
  • “घर गंदा हो तो हो, रंगों के धब्बों से ही होली की पहचान है!”
  • “कपड़े तो धुल जाएंगे, मज़े की यादें रह जाएंगी!”
  • “ज़्यादा पानी-वानी की बात हुई, तो अगले हफ्ते बाल्टी भर-भर कर नहाएंगे!”

बच्चों की ज़िद:

  • “मम्मी, पापा, बस थोड़ा सा रंग! प्लीज़ज़!”
  • “हम सावधानी से खेलेंगे, सच में!”
  • “मम्मी आप भी हमारे साथ, रंगों से सराबोर हो जाओ!”
  • “पापा, आप तो हमारे हीरो हो, हमारी तरफ़ से खेलिए ना!”

मम्मी-पापा का समझौता:

  • “ठीक है बाबा, खेलो पर ज़्यादा उछल-कूद मत मचाना!”
  • “कपड़ों का ख्याल रखना, और ज़्यादा गुब्बारे मत फोड़ना!”
  • “इतनी पिचकारी से मत भीगो कि नहाने तक ठंड लग जाए!”

होली का रंगारंग खेल शुरू!

  • बच्चे रंगों की बौछार में खुशी से नाचते हैं, एक-दूसरे पर रंग बरसाते हैं!
  • मम्मी-पापा भी बच्चों की मस्ती देखकर झूम उठते हैं, और रंगों की दुनिया में खो जाते हैं!
  • थोड़ा रंग तो इधर-उधर छलक ही जाता है, थोड़ी पानी की बर्बादी भी होती है
  • लेकिन माहौल में खुशी है, चेहरों पर हँसी है, सब रंगों से सराबोर हैं!

आखिरकार, रंगों की इस खुशी में कोई हारता नहीं, कोई जीतता नहीं! होली की मस्ती में ‘मम्मी vs पापा’ का संग्राम कब का पिघल चुका है!

यही है असली होली, यही है भारत की होली!

मम्मी vs पापा: एक हास्यपूर्ण झगड़ा

जब आती है होली की धूम, तब शुरू होता है घर में एक नया खेल – “मम्मी vs पापा”. हाँ, यही होता है, भारतीय परिवारों की अनोखी कहानी!

मम्मी, जो सब कुछ जानती हैं और हमेशा सही होती हैं, उनके पास एक जादू है। बच्चे उनके पास आकर्षित होते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि मम्मी को सब पता है। और तब आता है पापा, जो कभी-कभी थोड़े से ख़ास होते हैं।

पर जब पापा अपनी ‘औकात’ पर आते हैं, तो बच्चे फिर से अपनी हेसियत पर आ जाते हैं। क्योंकि जैसा कि हम सब जानते हैं, “मम्मी तो सब कुछ जानती हैं, लेकिन पापा भी तो उनके बारे में सब कुछ जानते हैं”।

तो दोस्तों, यही है हमारे भारतीय परिवारों की कहानी – एक हास्यपूर्ण झगड़ा, जिसमें हर किसी का अपना चार्म है। और जब होली की रंगों से भरी ज़िन्दगी में यह खेल शुरू होता है, तो यहाँ कोई हारने वाला नहीं है!

छोटी मुसीबत में मम्मी याद आती है, जैसे कक्षा में कोई चुटकी काट ले तो “उई अम्मा”, लेकिन अगर कक्षा में लड़ाई करने पर प्रिंसिपल साहब अपने कमरे में बुला ले तो “मर गए बाप”।

सारांश:

मम्मी की ममता और पापा की क्षमता बेमिसाल है, जिससे दोनों को विजेता घोषित किया जाता है।