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वसंत ऋतु का सौंदर्य: कक्षा 10 हिंदी क्षितिज, एनसीईआरटी – सेनापति की कविता में ऋतुराज का आगमन

सेनापति: रीतिकाल के कवि और प्रकृति चित्रण में माहिर

सेनापति रीतिकाल के उन कवियों में से हैं जिनकी रचनाओं में भावुकता के साथ-साथ गहन प्रकृति चित्रण भी देखने को मिलता है. आइए जानते हैं उनके जीवन परिचय और ऋतु वर्णन की विशेषताओं के बारे में:

जीवन परिचय

  • सेनापति का जन्म विक्रम संवत् 1616 में दीक्षित गोत्रीय ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम गंगाधर और पितामह का नाम परशुराम दीक्षित था।
  • माना जाता है कि “सेनापति” उनका उपनाम या उपाधि है, उनका मूल नाम इतिहास के गर्भ में कहीं खो गया है।
  • रीतिकाल के अन्य कवियों की तरह उन्होंने किसी की शैली का अनुसरण नहीं किया बल्कि अपनी मौलिकता से ख्याति अर्जित की।
  • वे रामभक्त कवि थे और उनकी रचनाओं में श्लेष अलंकार का प्रयोग कुशलता से किया गया है।
  • उनकी रचनाओं में से मुख्य रूप से दो ग्रंथ प्रसिद्ध हैं – “काव्यकल्पद्रुम” और “कवित्त रत्नाकर”।
  • वे ब्रजभाषा के कवि थे और उनकी रचनाओं में प्रसाद गुण (सरल और स्पष्ट भाषा) और ओज गुण (शक्ति और वीरता का भाव) प्रमुख रूप से पाए जाते हैं।

सेनापति का ऋतु वर्णन

सेनापति की रचनाओं की सबसे बड़ी विशेषता है उनका अद्भुत ऋतु वर्णन। उनकी कविताओं में ऋतुओं का वर्णन इतना सूक्ष्म, मानवीयकरण से युक्त और जीवंत होता है कि पाठक मानो उस मौसम को साक्षात अनुभव कर लेता है।

  • वसंत ऋतु: सेनापति वसंत ऋतु का वर्णन किसी राजा के आगमन की भव्यता से करते हैं। रंगीन उपवन, सुगंध से भरा वातावरण और कोयल की मीठी बोली इस राजा के स्वागत की तैयारी का वर्णन करती है।
  • वर्षा ऋतु: भीषण गर्मी के बाद वर्षा ऋतु का आगमन मानो किसी उत्सव की तरह होता है। कवि ने बरसात की बूंदों से खिल उठती धरती और किसानों के हर्ष का बेहतरीन चित्रण किया है।
  • शीत ऋतु: शीत ऋतु के वर्णन में कवि ने एक विजेता सेनापति के आक्रमण का सादृश्य प्रस्तुत किया है। तीखी हवाएँ तीर की तरह चुभती हैं, सूरज की किरणें कमजोर पड़ जाती हैं और लोग अलाव के सामने ठिठुरते हैं।

सेनापति की कविताओं में ऋतुओं का प्रभाव इतना वास्तविक और मार्मिक होता है कि उन्हें हिंदी साहित्य में कालजयी कवियों में गिना जाता है।

ऋतु वर्णन

वसंत ऋतु

बरन बरन तरु फूले उपबत बन सोई चतुरंग संग दल लहियतु है। गुंजत मधुप गान गुन गहियतु हैं। बंदी जिमि बोलत बिरद बीर कोकिल हैं, सोने के सुगंध माँझ सने रहियतु हैं। आवै आस-पास पुहुपन की सुबास सोई. सोभा की समाज, सेनापति सुख-साज, आज, आवत बसंत रितुराज कहियतु है।।

अर्थ:

विभिन्न प्रकार के वृक्षों पर रंगीन फूल खिले हुए हैं, जो मानो चतुरंग (सेना) के दल की तरह लग रहे हैं। मधुमक्खियां गुनगुनाते हुए फूलों का रस ग्रहण कर रही हैं। कोयल कूक रही हैं और उनका मधुर गान मानो किसी बंदी की तरह वीरता का गान कर रहा है। फूलों की सुगंध चारों ओर फैली हुई है। सेनापति कहते हैं कि आज वसंत ऋतुराज का आगमन हुआ है, जो सुख और समृद्धि का प्रतीक है।

ग्रीष्म ऋतु

देखें छिति अंबर जले है चारि और छोर, तिन तरबर सब ही को रूप हौ है। महाार लागे जोति भादन की होति चले. जलद पवन तन सेक मानों परयौ है। देखौ चतुराई सेनापति कविताई की जू ग्रीषम विषम बरसा की सम कर्यो है।।

अर्थ:

पृथ्वी और आकाश चारों ओर जल रहे हैं। सभी पेड़-पौधे सूख गए हैं। तेज धूप से तन झुलस रहा है। तेज हवाएं शरीर को जला रही हैं। सेनापति कहते हैं कि देखिए, कविता की चतुराई से मैंने ग्रीष्म और वर्षा ऋतु को समान बना दिया है।

वर्षा ऋतु

दारुन तरनि तरें नदी सुख पायें सब सीरी चन छाँह चाहियौई चित्त धर्मी है। दामिनी दमक, सुरचाप की चमक, स्याम घटा की झमक अति घोर घनघोर हैं। कोकिला, कलापी कल कूजत हैं जित-तित, सेनापति आवन कहह्यो है मनभावन सु लाग्यौ तरसावन विरह जुर जोर हैं। लग्यौ है बरसावन सलिल चहुँ और हैं।।

अर्थ:

तेज हवाओं से नदियों में तरंगें उठ रही हैं। चांदनी की छाया में धरती सुखी और शांत लग रही है। बिजली चमक रही है, इंद्रधनुष दिखाई दे रहा है और काली घटाएं घनघोर गर्जना कर रही हैं। कोयल और कलापी मधुर गान गा रहे हैं। सेनापति कहते हैं कि मानो बरसात ऋतु का आगमन हुआ है। मन को भाने वाला यह ऋतु विरहियों के लिए कष्टदायक है। चारों ओर पानी ही पानी है।

शीत ऋतु

सीकर ते सीतल समीर की सीत की प्रबल सेनापति कोपि चढ्यौ दल, निबल अनल, गयौ सूरि सियराइ कै। हिम के समीर, तेई बरसै विषम तीर रहीहै गरम भौन कोनन में जाइ कै। मानो मीत जानि महा सीत तें पसारि पानि, छतियों की छोह राख्यौ पातक छिपाइ के ।।

अर्थ:

शीतल हवाओं से शीत ऋतु का प्रबल सेनापति क्रोधित होकर आ गया है। अग्नि मंद पड़ गई है और सूर्य दक्षिण दिशा में चला गया है। बर्फीली हवाएं तीर की तरह चुभ रही हैं। गरमी कहां चली जाए?

निष्कर्ष:

सेनापति ने ऋतुओं का अत्यंत सुंदर और सजीव चित्रण किया है। उन्होंने ऋतुओं के विभिन्न पहलुओं को बारीकी से देखा और उनका वर्णन किया है। उनकी कविता में ऋतुओं का सौंदर्य और प्रभावशाली चित्रण देखने को मिलता है।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

1. कवि ने किस ऋतु को ‘रितुराज’ कहा है?

(क) हेमन्त

(ख) शिशिर

(ग) ग्रीष्म

(घ) वसन्त

उत्तर: (घ) वसन्त

2. सुरचाप का अर्थ है –

(क) इन्द्रधनुष

(ख) देवता

(ग) अर्धवृत्त

(घ) घटा

उत्तर: (क) इन्द्रधनुष

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न

3. कविता में बंदीजन किसे कहा गया है?

उत्तर: कोयल को

4. प्रिय ने किस ऋतु में वापस आने के लिए प्रेयसी को कहा था?

उत्तर: बसंत ऋतु में

5. ऋतुवर्णन में ऋतुराज किसे कहा गया है?

उत्तर: वसंत ऋतु को

6. ‘निवल अनल’ से क्या तात्पर्य है?

उत्तर: मंद पड़ गई अग्नि से

लघुत्तरात्मक प्रश्न

7. चतुरंग दल से सेनापति का क्या तात्पर्य है?

उत्तर: सेनापति का तात्पर्य रंगीन फूलों से है, जो मानो चतुरंग (सेना) के दल की तरह लग रहे हैं।

8. सावन के माह में कामदेव नायिका को परेशान कैसे कर रहा है?

उत्तर: सावन के माह में कामदेव नायिका को बिजली की चमक, बारिश की बूंदों और मधुर गानों से परेशान कर रहा है।

9. ग्रीष्म ऋतु में बादल और हवा की क्या स्थिति हो गई है?

उत्तर: ग्रीष्म ऋतु में बादल विरल हो गए हैं और हवाएं तेज और गर्म हो गई हैं।

निबंधात्मक प्रश्न

10. सेनापति का ऋतुवर्णन हिन्दी साहित्य में अनूठा क्यों है?

उत्तर: सेनापति का ऋतुवर्णन हिन्दी साहित्य में अनूठा है क्योंकि इसमें उन्होंने ऋतुओं का केवल वर्णन नहीं किया है, बल्कि उन्हें मानवीय भावनाओं और अनुभवों से जोड़ा है। उनकी कविता में ऋतुओं का सौंदर्य और प्रभावशाली चित्रण देखने को मिलता है।

11. पठित काव्यांश के आधार पर शीत ऋतु का वर्णन कीजिए।

उत्तर: शीत ऋतु में ठंडी हवाएं चल रही हैं, सूर्य की किरणें मंद पड़ गई हैं, और लोग अलाव के सामने बैठकर ठंड से बचाव कर रहे हैं। नदियां जम गई हैं और पेड़ों पर पत्ते नहीं हैं।

12. वसंत ऋतु के सौन्दर्य पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।

उत्तर: वसंत ऋतु सौन्दर्य का प्रतीक है। इस ऋतु में प्रकृति नवजीवन से भर उठती है। पेड़ों पर नए पत्ते आते हैं, फूल खिलते हैं, और कोयल की मधुर आवाज सुनाई देती है। वसंत ऋतु में प्रेम और उत्सव का माहौल होता है।