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“जन्मेजय की कथा: भाग्य और कर्म के बीच की यात्रा – वेदव्यासजी की अमर शिक्षाएँ”

आज की कहानी: होनी बड़ी बलवान

अभिमन्यु के पुत्र, राजा परीक्षित के बाद उनके पुत्र जन्मेजय ने राज्य की बागडोर संभाली। एक दिन, जन्मेजय वेदव्यासजी के साथ बैठे हुए थे। उन्होंने वेदव्यास जी से नाराजगी भरे स्वर में कहा कि जब आप जैसे समर्थ लोग और श्रीकृष्ण जैसे भगवान उपस्थित थे, तब भी महाभारत का युद्ध रोका नहीं जा सका। जन्मेजय के इन शब्दों पर भी व्यासजी शांत रहे और समझाया कि यह विधि का विधान था, जिसे बदला नहीं जा सकता था।

जन्मेजय ने चुनौती दी कि वह अपने पुरुषार्थ से किसी भी होनी को टाल सकता है। व्यासजी ने उन्हें भविष्यवाणी की कि वह एक दिन शिकार पर जाएगा, एक सुंदर स्त्री से मिलेगा, उससे विवाह करेगा और एक यज्ञ करेगा जो उसकी मृत्यु का कारण बनेगा। जन्मेजय ने कहा कि वह इसे रोक देगा।

जब समय आया, जन्मेजय ने शिकार पर जाने का निर्णय लिया, और वह सब कुछ हुआ जो व्यासजी ने कहा था। अंत में, जन्मेजय को कुष्ठ रोग हुआ और उन्होंने व्यासजी से जीवन बचाने की प्रार्थना की। व्यासजी ने उन्हें महाभारत का श्रवण कराया और कहा कि अगर वह अविश्वास करेगा तो वे उनका जीवन नहीं बचा पाएंगे। जन्मेजय ने अविश्वास किया, और व्यासजी ने प्रसंग रोक दिया, जिससे जन्मेजय को अपने कर्म का फल समझ में आया। व्यासजी के प्रसंग रोकने के बाद, जन्मेजय को एहसास हुआ कि वह अपने अहंकार और अविश्वास के कारण अपनी होनी को नहीं बदल सकता। व्यासजी की भविष्यवाणी के अनुसार, जन्मेजय को कुष्ठ रोग हुआ और उसकी मृत्यु हो गई।

इस कहानी का सार यह है कि भाग्य और कर्म दोनों हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हमारे कर्म हमारे हाथ में हैं, परंतु उसके फल हमारे हाथ में नहीं हैं। गीता के 11वें अध्याय के 33वें श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा है, “उठ खड़ा हो और अपने कार्य द्वारा यश प्राप्त कर। यह सब तो मेरे द्वारा पहले ही मारे जा चुके हैं तू तो केवल निमित्त बना है।” हमें समझना चाहिए कि हम भाग्य को नहीं बदल सकते, परंतु हम अपने कर्मों और ईश्वर के नाम के जाप से होनी के प्रभाव को कम कर सकते हैं। रोग आ सकते हैं, परंतु उनकी पीड़ा को कम किया जा सकता है।

🙏 आपका दिन शुभ और मंगलमय हो। जय गुरुदेव 🙏