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आज का प्रेरक प्रसंग एवम एक श्रेष्ठ कहानी मार्च 2024

22❗03❗2024

आज का प्रेरक प्रसंग

!! प्रकृति की नियति !!

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दो लड़के बाग में खेल रहे थे। तभी उन्होंने एक पेड़ पर जामुन लगे देखे। उनके मुंह में पानी भर आया। वे जामुन खाना चाहते थे लेकिन पेड़ बहुत ऊंचा था। अब कैसे खाएं जामुन? समस्या बड़ी विकट थी।

एक लड़का बोला, “कभी-कभी प्रकृति भी अन्याय करती है। अब देखो, जामुन जैसा छोटा-सा फल इतनी ऊंचाई पर इतने बड़े पेड़ पर लगता है और बड़े-बड़े खरबूजे बेल से लटके जमीन पर पड़े रहते हैं।”

दूसरे लड़के ने भी सहमति जताई। वह बोला, “तुम ठीक कहते हो, तुम्हारी बात में दम है लेकिन मेरी समझ में यह बात नहीं आई कि प्रकृति ने छोटे-बड़े के अनुपात का ध्यान क्यों नहीं रखा। अब यह भी कोई तुक हुई कि इतना छोटा-सा फल तोड़ने के लिए इतने ऊंचे पेड़ पर चढ़ना पड़े। मेरा तो मानना है कि प्रकृति भी संपूर्ण नहीं।”

तभी अचानक ऊपर से जामुन का एक गुच्छा एक लड़के के सिर पर आ गिरा। उसने ऊपर की ओर देखा लेकिन कुछ बोला नहीं।

तभी दूसर लड़का बोला, “मित्र! अभी हम प्रकृति की आलोचना कर रहे थे और प्रकृति ने ही हमें सबक सिखा दिया। सोचो जरा, यदि जामुन के बजाए तरबूज गिरा होता तो क्या होता? शायद तुम्हारा सिर फट जाता और शायद फिर बच भी न पाते।”

“हां, प्रकृति जो भी करती है अच्छा ही करती है।” वह लड़का बोला जिसके सिर पर जामुन का गुच्छा गिरा था।

सदैव प्रसन्न रहिये – जो प्राप्त है, पर्याप्त है। जिसका मन मस्त है – उसके पास समस्त है।।

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आज की कहानी

रिश्ते में मित्रता

मम्मी जी के चेहरे की चमक और किचन से आती पकवानों की महक दोनों की वजह एक ही थी। आज लंच में उनकी एक फ्रेंड आने वाली थीं, कल ही बता दिया था उन्होंने।

कल ही मेरे साथ अपनी फ्रेंड को गिफ्ट में देने के लिए महंगी सी साड़ी भी ले आईं। आज मुझसे भी पहले किचन में घुस गईं और बड़े जतन से खुद से तैयार की गई पकवानों की लिस्ट में से एक के बाद एक डिश बनानी भी शुरू कर दीं।

खूब खुश नजर आ रही थीं, पर मैं…… बेमन, बनावटी मुस्कान चेहरे पर सजाए काम में उनका हाथ बटा रही थी।

मायके में मेरी माँ का आज जन्मदिन था। शादी के बाद यह माँ का पहला जन्मदिन होगा जब कोई भी उनके साथ नहीं होगा। अब मैं यहाँ, पापा ऑफिस टूर पर और भाई तो है ही परदेस में।

मायके जाने के लिए कल मम्मी जी से बोलने ही वाली थी कि उन्होंने मेरे बोलने से पहले ही अपनी फ्रेंड के आने वाली बात सामने रख दी। दोपहर में लंच और शाम को हम सभी का उनके साथ फन सिटी जाने का प्रोग्राम तय हो चुका था।

क्या कहती मन मार कर रह गई। घर को सजाया और खुद को भी बेमन सी सँवर गई। कुछ ही देर में डोर बेल बजी उनका स्वागत करने के लिए मम्मी जी ने मुझे ही आगे कर दिया।

गेट खोला, बड़े से घने गुलदस्ते के पीछे छिपा चेहरा जब नजर आया तो मेरी आंखें फटी की फटी और मुँह खुला का खुला रह गया। सामने मेरी माँ खड़ीं थीं। माँ मुझे गुलदस्ता पकड़ाते हुए बोली, “सरप्राइज”

हैरान खड़ी मैं, अपनी माँ को निहार रही थी। “बर्थडे विश नहीं करोगी हमारी फ्रेंड को?” पीछे खड़ी मम्मी जी बोली।

“माँ………आपकी फ्रेंड?”

“अरे भाई झूठ थोड़ी ना कहा था हमने और फिर किसने कहा कि समधिन-समधिन दोस्त नहीं हो सकती।”

“बिल्कुल हो सकती है जो अपनी बहू को बेटी जैसा लाड़ दुलार करें सिर्फ वही समधिन को दोस्त बना सकती है।” कहते हुए माँ ने आगे बढ़कर मम्मी जी को गले लगा लिया।

मेरे मुँह से एक शब्द भी ना निकल पाया बस मैंने मम्मी जी की हथेलियों को अपनी आंखों से स्पर्श करके होठों से चूम लिया। माँ हम दोनों को देखकर भीगी पलकों के साथ मुस्कुरा पड़ीं।

एक तरफ मेरी माँ खड़ी थी जिन्होंने मुझे रिश्तों की अहमियत बताई और दूसरी तरफ मम्मी जी जिनसे मैंने सीखा रिश्तों को दिल से निभाना। दोनों मुझे देखकर जहाँ मुस्कुरा रही थीं वही मैं दोनों के बीच खड़ी अपनी किस्मत पर इतरा रही थी।

सदैव प्रसन्न रहिये। जो प्राप्त है, पर्याप्त है।।