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कृपाराम खिड़िया रचित राजिया रा सोरठा पर निबंध कैसे लिखें? वस्तुनिष्ठ, लघुत्तरात्मक प्रश्नों के उत्तर सहित

कृपा राम खिडिया

जीवन परिचय-

कवि कृपाराम खिड़िया शाखा के चारण थे। इनके पिता का नाम जगराम जी था जो उराड़ी गाँव (वर्तमान पाली जिले में) के निवासी थे। सीकर नरेश देवीसिंह एवं उनके पुत्र रावराजा लक्ष्मण सिंह ने इनकी कवि प्रतिमा एवं विद्वत्ता से प्रभावित हो इन्हें क्रमशः महराजपुरा एवं लछमणपुरा गाँव की जागीर प्रदान की थी।

कृपारान खिड़िया का रचनाकाल संवत 1884 (वि.सं.) के आसपास माना जाता है। इनकी रचनाओं में राजिया रा सोरठा (काव्य), पालकनेसी (नाटक) राधा एक अलंकार ग्रन्थ
के नाम निनाये जाते हैं। इनमें से राजिया रा सोरठा ही वर्तमान में उपलब्ध है।

राणिया रा सोरठा (ग्रन्थ) कवि ने अपने सेवक राजाराम (राजिया) को संबोधित कर लिखा है। राजाराम (राणिया) कवि का विश्वासपात्र एवं सेवाभावी सेवक था। राजाराम
निसंतान था। इसलिए यह बहुत उदास रहता था कि मरणोपरान्त कोई उसका नाम लेवा भी नहीं बचेगा। तब कवि ने उसे आश्वस्त किया कि वह अपनी कविता द्वारा उसे अमर बना देंगे कि सारी दुनिया उसका नाम बाद रखेगी। तब कमि ने राजिया को संबोधित कर नीति के सौरठ रख्ने शुरू किये। इसमें लगभग 140 सोरठे मिलते हैं।

‘राजिया रा सोरठा राजस्थानी भाषा में संबोधन नीति काव्य की प्रथम रखना मानी जाती है। इसमें डिंगल भाषा का प्रयोग हुआ है। सारता छंद है तथा वैण सगाई मुख्य अलंकार है। इनकी सहजता, सरलता एवं सरसता तथा प्रसादगुणयुक्तता के कारण ‘ राजिया रा सोरठा’ लोक समाज में बहुत प्रसिद्ध है।

पाठ परिचय

संकलित अंश में कवि ने हिम्मत एवं पराक्रम का महत्व ,सद संगति का लाभ, आपदा से पूर्व प्रबन्धन के महत्त्व को स्पष्ट किया है। इनमें मानव जीवन में वाणी को महत्वपूर्ण बताते हुए सोच-समझकर एवं मधुर वचन बोलने का उपदेश दिया गया है। कवि के अनुसार एक आदर्श समाज में गुणों की पूजा होनी चाहिए। इन सोरठों में कवि की विद्वत्ता, बहुज्ञता एवं अनुभव की व्यापकता प्रकट होती है।

राजिया रा सोरठा

गुण अवगुण जिण गांव सुर्ण न कोई समिले। उण नगरी विच नांव, रोही आधी राजिया।।

कारज सरै न कोय, बल प्राक्रम हिम्मत बिर्ता। हलकारों की होय, रंगा स्यालो राजिया ।।

मिळे सहि वन मांह, किन गिरगाँ मुगपत कियौ । जोरावर अति जर्जाह, यसै उका गत राजिया ।।

आछा जुध अणपार, चार खां सनमुख धसे। भोगै हुय भरतार, रसा जिके नर राजिया ।।

इणही सूं अवदात कहणी सोच विचार कर। से मौसर से बात, रूड़ी लगे न राजिया ।।

पहली कियां उपाव, दव दुरुमण आभरा दटै। प्रचंड हुआं विसवाव, रोभा घालै राजिया ।।

हीमत कीमत होय, बिना हीमत कीमत नहीं। करै न आदर कोय, रद कागद ज्यूँ राजिया ।।

उपजावै अनुराग, कोयल मन हरखत करें। कडची लागे काग, रसना रा गुण राजिया ।।

दूध नीर मिल दोय, इक जिसी आकित हुवे। करै न न्यारी कोय, राजहंस बिना राजिया ।।

गलियामिर मंझार, डर को तर चंनण हुये। संगत लिये सुधार संखा ही नै राजिया ।।

पाटा पीड़ उपाय, तन लागा तरवारिया। वह जीम रा गाम, रती न ओखद राजिया ।।

मूसा ने मंजार, हित कर बैठा डेकण। सह जाणै संसार, रस नह रहसी राजिया ।।

खळ गुळ अण दुताय, एक भाव कर जादरे। ते नगरी हंताय, रोही आछी राजिया ।।

पण घण साबळ घाय, नह फूटै पाहड़ निवढ़। जड़ कोमळ मिद जाम राय पड़े जद राजिया ।।

पय मीठा कर पाक, जो इमरत सींचीजिये। उर कड़वाई आक, रंब न मुकै राजिया ।।

यह रचना “राजिया रा सोरठा” शीर्षक से एक प्रसिद्ध नीतिशास्त्रीय रचना है। यह रचना राजस्थानी भाषा में लिखी गई है और इसमें जीवन के विभिन्न पहलुओं पर नीतिपरक बातें कही गई हैं।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न:

1. राजिया का मूल नाम था

(क) राजा

(ख) राजाराम

2. दूध एवं जल की मिलावट को कौन अलग करता है?

(क) कौआ

(ख) कोयल

(ग) तोता

(घ) राजहंस

अतिलघुत्तरात्मक प्रश्न:

3. कवि के अनुसार किसके अभाव में कोई भी कार्य सिद्ध नहीं हो सकता है?

उत्तर: कवि के अनुसार हिम्मत के अभाव में कोई भी कार्य सिद्ध नहीं हो सकता है।

4. दूध एवं नीर (जल) को कौन अलग-अलग कर सकता है?

उत्तर: दूध एवं नीर (जल) को राजहंस अलग-अलग कर सकता है।

5. कवि के अनुसार किन-किन का उपाय पहले ही कर लेना चाहिए?

उत्तर: कवि के अनुसार मुसीबत और पीड़ा का उपाय पहले ही कर लेना चाहिए।

6. कौनसी जगह चंदन के वृक्ष बहुतायत में पाये जाते हैं?

उत्तर: चंदन के वृक्ष मलय पर्वत पर बहुतायत में पाये जाते हैं।

7. किस के घाव कभी नहीं भरते हैं?

उत्तर: मन के घाव कभी नहीं भरते हैं।

तमूत्तरात्मक प्रश्न:

8. संकलित अंश के अनुसार किस नगर में नहीं रहना चाहिए?

उत्तर: संकलित अंश के अनुसार ऐसे नगर में नहीं रहना चाहिए जहाँ अच्छे लोगों की कमी हो।

9. अस्वभाविक मित्रता के घातक परिणाम होते हैं संकलित अंश के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: संकलित अंश में चूहा और बिल्ली की कहानी अस्वभाविक मित्रता का उदाहरण है। यह कहानी हमें सिखाती है कि अस्वभाविक मित्रता के घातक परिणाम होते हैं। चूहा और बिल्ली की मित्रता स्वार्थ पर आधारित थी, जिसके कारण अंत में चूहे की मृत्यु हो गई।

10. जन्मजात प्रवृत्तियों में बदलाव असंभव हैं संकलित अंश के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: संकलित अंश में कछुआ और खरगोश की कहानी जन्मजात प्रवृत्तियों के बारे में है। यह कहानी हमें सिखाती है कि जन्मजात प्रवृत्तियों में बदलाव असंभव होते हैं। कछुआ जन्मजात धीमा था, और खरगोश जन्मजात तेज था। चाहे कितनी भी कोशिश कर लें, कछुआ कभी भी खरगोश से तेज नहीं दौड़ सकता था।

निबंधात्मक प्रश्न:

11. संकलित अंश के आधार पर हिम्मत एवं पराक्रम के महत्व को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: संकलित अंश में राजिया का चरित्र हिम्मत एवं पराक्रम का प्रतीक है। राजिया एक साहसी और वीर योद्धा था जो किसी भी चुनौती से डरता नहीं था। उसने कई युद्ध लड़े और जीत हासिल की।

12. संकलित अंश के आधार पर वाणी के महत्त्व को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: संकलित अंश में वाणी के महत्व को दर्शाया गया है। वाणी का उपयोग अच्छे और बुरे दोनों कामों के लिए किया जा सकता है। वाणी से हम दूसरों को प्रेरित कर सकते हैं, ज्ञान प्रदान कर सकते हैं, और उन्हें खुशी दे सकते हैं।

13. निम्नलिखित्त पंक्तियों की राप्रसंग व्याख्या कीजिए:

(क) दूध नीर मिळ दोय, हेक जिती आक्रित हुवै।

(ख) करै न न्यारी कोय, राजहंस बिना राजिया ।।

(क) दूध नीर मिळ दोय, हेक जिती आक्रित हुवै।

व्याख्या ( व्याख्या continued):

इस पंक्ति में कवि दूध और पानी के मिश्रण की बात कर रहे हैं। दूध और पानी मिल जाने पर दोनों एक जैसे हो जाते हैं, उन्हें अलग करना मुश्किल होता है। इस उदाहरण के माध्यम से कवि यह बताना चाहते हैं कि अच्छी संगत का भी ऐसा ही प्रभाव होता है। जब हम अच्छे लोगों के साथ रहते हैं तो हम भी उनके जैसा व्यवहार अपनाने लगते हैं।

(ख) करै न न्यारी कोय, राजहंस बिना राजिया ।।

व्याख्या: इस पंक्ति में राजहंस का उपयोग विवेकशील व्यक्ति के रूप में किया गया है। दूध और पानी मिलने के बाद उन्हें अलग करना मुश्किल होता है, लेकिन राजहंस केवल दूध को ही ग्रहण करता है और पानी को छोड़ देता है। इस उदाहरण के माध्यम से कवि यह बताना चाहते हैं कि हमें भी उसी तरह से विवेकशील होना चाहिए। हमें अच्छी चीजों को अपनाना चाहिए और बुरी चीजों को छोड़ देना चाहिए।