हमीदा बानो: भारत की पहली महिला पहलवान
जन्म और प्रारंभिक जीवन:
- हमीदा बानो का जन्म 1920 के दशक में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में हुआ था।
- उनके पिता, नादेर पहलवान, एक प्रसिद्ध पहलवान थे, जिन्होंने 10 साल की उम्र में उन्हें कुश्ती का प्रशिक्षण दिया।
- उस समय महिलाओं के लिए कुश्ती करना एक अत्यंत साहसी कार्य माना जाता था, लेकिन हमीदा ने सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ते हुए कुश्ती में अपना करियर बनाने का फैसला किया।
कुश्ती करियर:
- हमीदा बानो ने 1937 में अपने कुश्ती करियर की शुरुआत की।
- उन्होंने पुरुष विरोधियों के साथ कुश्ती लड़ी, जिसके कारण उन्हें अक्सर आलोचना और विरोध का सामना करना पड़ा।
- बानो ने अपनी ताकत और कुश्ती कौशल के दम पर कई पुरुष पहलवानों को हराया, जिनमें प्रसिद्ध पहलवान गामा पहलवान भी शामिल थे।
- 1954 में, उन्होंने “मुझे एक मुकाबले में मारो और मैं तुमसे शादी कर लूंगी” की अपनी प्रसिद्ध चुनौती जारी की। इस चुनौती के बाद, उन्होंने कई पुरुष पहलवानों को हराया, जिनमें बाबा पहलवान और रूसी पहलवान वेरा चिस्टिलिन भी शामिल थे।
- बानो ने भारत और विदेशों में कई कुश्ती प्रतियोगिताओं में भाग लिया और जीत हासिल की।
- उन्हें ‘अलीगढ़ की वीरांगना’ के नाम से भी जाना जाता था।
विवाद और चुनौतियां:
- उस समय के रूढ़िवादी समाज में, एक महिला का पुरुषों के साथ कुश्ती करना एक अशोभनीय कार्य माना जाता था।
- बानो को अक्सर लिंगभेद और भेदभाव का सामना करना पड़ा।
- उन्हें कई बार अपमानित किया गया, उन पर पथराव किया गया और यहां तक कि जान से मारने की धमकी भी दी गई।
- लेकिन बानो ने इन चुनौतियों से हार नहीं मानी और कुश्ती के प्रति अपने जुनून को जारी रखा।
निष्कर्ष:
- हमीदा बानो एक प्रेरणादायक महिला थीं जिन्होंने सामाजिक रूढ़ियों को तोड़ा और भारत में महिला कुश्ती के खेल को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- उन्होंने साबित कर दिया कि महिलाएं पुरुषों की तरह ही मजबूत और सक्षम हैं।
- वे आज भी भारत की सबसे प्रसिद्ध और सम्मानित महिला पहलवानों में से एक हैं।
हमें उम्मीद है कि यह जानकारी आपको हमीदा बानो के जीवन और उपलब्धियों के बारे में जानने में मददगार लगी होगी।